बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 9
विकास एवं क्षेत्रीय असमानता के संकेतक
( Indicators of Development & Regional Disparity)
प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
उत्तर -
क्षेत्रीय विषमता: अवधारणा
समाजशास्त्रीय शोध में विषमता शब्द का बहुत बार प्रयोग होता है। इसके अंग्रेजी समतुल्य शब्द disparity की व्युत्पत्ति लैटिन के शब्द disparitas से मानी जाती है जिसका अर्थ है 'विभाजित'। अत: disparity का शाब्दिक अर्थ असमानता या किसी विषय या घटना में अनुपातहीनता होना है। द अमेरिकन हेरिटेज शब्दकोष ने disparity अर्थात् विषमता को असमानता या अंतर होने (आयु, पद, मजदूरी आदि) के रूप में परिभाषित किया है। अतः क्षेत्रीय विषमता का अर्थ होगा अंतर्क्षेत्रीय या अंतः क्षेत्रीय ( भौगोलिक इकाइयों, गतिविधि समूहों) इकाइयों से जुड़े आर्थिक एवं गैर-आर्थिक सूचकों में अंतर पाया जाना। केरीन बोरोअर ने इस प्रकार से परिभाषा की है : उपयुक्त समझे गए किसी संदर्भित स्वरूप / धारणा से किन्हीं स्थानिक (क्षेत्रीय, सीमानुसार) आधार पर नियत मानक से विच्युति को क्षेत्रीय विषमता कहते हैं। अलोइस कत्शेरोअर आदि के अनुसार “क्षेत्रीय विषमता किन्हीं भू-क्षेत्रीय आबंटनों के अनुसार उस भू-क्षेत्रीय संरचना की कम से कम दो इकाइयों के बीच विभिन्न लक्षणों, प्रक्रियाओं, घटनाक्रमों आदि में विच्युति या असमानता होगी"।
क्षेत्रीय विषमता उस अवस्था को इंगित करती है जब विभिन्न क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय, उपभोग खाद्य उपलब्धता, कृषिक एवं औद्योगिक विकास, संरचना सुविधाओं के विकास समान प्रायः नहीं हों। यह विषमता की समस्या समूचे विश्व में पायी जाती है। हाँ, सभी देशों में इसकी गहनता समान नहीं होगी। सभी देशों को अपनी विकास यात्रा में इस समस्या से जूझना पड़ता है।
क्षेत्रीय विषमता के सैद्धान्तिक विश्लेषण में भी बड़े तीखे अंतर दिखाई देते हैं। किन्तु संवृद्धि के साथ क्षेत्रीय विषमताओं के उल्टे U-आकार जैसे सम्बन्ध पर सामान्य सहमति बनी है। साइमोन कुजनेट्स, हर्षमैन, मीरा जैसे क्षेत्रीय अध्ययनविदों ने सामाजिक-राजनीतिक विकास और आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में क्षेत्रीय विषमताएँ उभरना सामान्य माना है। इनके सिद्धान्तों के अनुसार विकास के प्रारंभिक चरणों में शहरों के वर्चस्व, सामाजिक- स्थानिक और वैयक्तिक स्तर की विषमताएँ उभरती हैं, किन्तु विकास की अगली सीढ़ियों पर चढ़ते हुए समय के साथ-साथ इनमें कमी आने लगती है। मिर्डल और हर्षमैन ने पश्च-प्रवाह बनाम प्रसार प्रभाव और ध्रुवीकरण बनाम निःसृति प्रभाव के विचार प्रतिपादित किए हैं। मिर्डल के विचार में गुणक और त्वरक की प्रक्रिया चहेते क्षेत्रों में संचीय वृद्धिमान प्रतिफलों की सृष्टि कर देती है। फिर तो विकास में अंतरों का उभरना उन क्षेत्रों के पक्ष में संचीय प्रसार की श्रृंखला को जन्म दे देती है। मिर्डल ने इसे अन्य क्षेत्रों की दृष्टि से पश्च-प्रवाह का नाम दिया है और इसी के कारण विकास में अंतर बने रहते हैं (अर्थात् अन्य क्षेत्र पिछड़ते जाते हैं)। अतः पश्च-प्रवाह के प्रभाव (जिसे हर्षमैन ने अंतर्क्षेत्रीय विकास के ध्रुवीकरण का नाम दिया था) का निवारण करने के लिए उपयुक्त नीतियाँ बनाई जानी चाहिएँ। इसी दृष्टि से उसने निःसृति प्रभाव को सबल बनाने के लिए नीति रूपरेखा भी सुझाई है। यह प्रभाव पिछड़े क्षेत्रों के विकास का पक्ष लेता है। मिर्डल ने इसे 'प्रसार प्रभाव' कहा था। इसमें पिछड़े क्षेत्रों के उत्पादों की मांग में वृद्धि और वहाँ प्रौद्योगिकी एवं ज्ञान का प्रसार सम्मिलित रहते हैं। मिर्डल ने तर्क दिया था कि पश्च-प्रवाह प्रभाव प्रसार प्रभाव की अपेक्षा क्षीण होता है और इस (पश्च-प्रवाह ) के निवारण के लिए सरकार को प्रभावी क्षेत्रीय विकास युक्तियाँ बनानी होंगी। लॉड़ (1990) भी इसी मत के समर्थक हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि यदि समस्या के निवारण के लिए उपयुक्त प्रति उपाय नहीं किए जाते तो विभिन्न क्षेत्रों के बीच अंतर लगातार अधिक विस्तृत होते रहते हैं। एग्लेमैन और मोरिस ने 1957-68 की अवधि के 74 अल्पविकसित देशों के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह पाया कि आर्थिक विकास के स्तर और गरीबतम 60 प्रतिशत जनसंख्या के आय में अंश के बीच असंगमत U-आकार जैसा सम्बन्ध होता है। एलिजोंड़ी और क्रुग्मैन का अध्ययन बता रहा है कि अर्थव्यवस्था जब प्रतिबंधकारी व्यापार नीतियाँ त्यागकर मुक्त व्यापार की ओर अग्रसर होती है तो क्षेत्रीय विषमताएँ कम होती हैं। कुछ भी हो, क्षेत्रीय विषमता को समझ पाने में इन सिद्धान्तों की उपादेयता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। अंततः किसी देश ने अपने नीतिगत उद्देश्य की वहां क्षेत्रीय विषमता के निवारण में उपर्युक्त सिद्धान्तों की व्यावहारिक उपादेयता के निर्धारक होंगे।
संवृद्धि और विषमता विषयक अधिकांश नई रचनाएँ उन प्रतिमानों पर केन्द्रित हैं जो विभिन्न देशों के बीच अंतर की व्याख्या करते हैं। इनमें ये सैद्धांतिक और अनुभवजन्य अध्ययन प्रमुख हैं: बैरो, रॉबर्ट जे०, बैररो, रॉबर्ट जे० एवं जोंगव्हाली, बैररो, रॉबर्ट जे० एन० ग्रेगरी मैनकिकव एवं जेवियर साला - ए मार्टिन, बॉमोल, कैशिन, कैशिक एवं सहाय, डेलोंग, डोरिक एवं न्युयेन, ईस्टर्लिन, क्वाह, आदि। ये सभी अध्ययन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर अभिनति और अमानिनति की प्रक्रिया से सम्बन्धित है।
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- प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
- प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
- प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
- प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
- प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
- प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
- प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
- प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
- प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
- प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
- प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
- प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
- प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
- प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
- प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
- प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
- प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
- प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
- प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
- प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
- प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
- प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
- प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
- प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?